Tuesday, September 27, 2022

मौत न हो

 💐एक अभिनव प्रयोग💐

*लम्बी तेवरी (तेवर-शतक)*

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+मन की खुशियाँ जागकर मीड़ रही हैं आँख

चीर रही जो अंधकार को उसी किरन की मौत न हो। 1

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चाहे जो भी नाम दे इस रिश्ते को यार

जिस कारण भी प्रीति जगे उस सम्बोधन की मौत न हो। 2

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बड़ा हो गया आज ये दौने-पत्तल चाट

जूठन के बलबूते आये इस यौवन की मौत न हो। 3

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यह डूबी तो टूटनी एक सत्य की साँस

माँग रहे सब लोग दुआएँ इस धड़कन की मौत न हो। 4

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पूजा घर में हो रही सिक्कों की बौछार

प्रभु से मिन्नत करे पुजारी ‘खनन-खनन’ की मौत न हो। 5

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तेरे भीतर आग है, लड़ने के संकेत

बन्धु किसी पापी के सम्मुख तीखेपन की मौत न हो। 6

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जन-जन की पीड़ा हरे जो दे धवल प्रकाश

जो लाता सबको खुशहाली उस चिन्तन की मौत हो। 7

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मन के भीतर दौड़ती बनकर एक तरंग

दुःख के बाद शाद करती जो उस थिरकन की मौत न हो। 8

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घर के भीतर बढ़ रही अब दहेज की रार

हुए अभी कर जिसके पीले उस दुल्हन की मौत न हो। 9

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कायर ने कुछ सोचकर ली है भूल सुधार

डर पर पड़ते भारी अब इस संशोधन की मौत न हो। 10

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चूम-चूम जिस पूत को बड़ा कर रही मात

बेटा जब सामर्थ्यवान हो, इस चुम्बन की मौत न हो। 11

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‘परिवर्तन' का अस्त्र ले जो उतरा मैदान

करो दुआएँ आग सरीखे जैसे रघुनन्दन की मौत न हो। 12

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देश लूटने एकजुट तस्कर-चोर-डकैत

सोच रहा राजा अब ऐसे गठबन्धन की मौत न हो। 13

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घड़ा पाप का भर रहा, फूटेगा हर हाल

ऐसा कैसे हो सकता है खल-शासन की मौत न हो। 14

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सब कुछ अपने आप फिर हो जायेगा ठीक

तू कर केवल इतनी चिन्ता समरसपन की मौत हो।

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एक दूसरे से गले रोज मिलें सद्भाव

जो दिल से दिल जोड़ रहा ऐसे प्रचलन की मौत न हो। 15

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तेरे आगे मैं झुकूँ,  तू दे कुछ आशीष

तुझ में श्रद्धा रखता हूँ मैं, बन्धु नमन की मौत न हो। 16

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बेटों को समझा रहे हाथ जोड़ माँ-बाप

बँटवारे के बीच खड़ा जो उस आँगन की मौत न हो। 17

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वादे से मुकरे नहीं, लाये सुखद वसंत

जो नेता संसद पहुँचा है, कहो ‘वचन’ की मौत न हो। 18

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चलो बन्धु हम ही करें घावों का उपचार

गारण्टी सत्ता कब देती चैन-अमन की मौत न हो। 19

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ये बाघों का देश है, जन-जन मृग का रूप

अब तो चौकस रहना सीखो, किसी हिरन की मौत न हो। 20

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शंका का तम घेरता सुमति-समझ को आज

पति-पत्नी के बीच प्रेम में आलिंगन की मौत न हो। 21

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‘सूरदास’ को मिल गया डिस्को क्लब-अनुबंध

अब डर है कुछ भक्ति-पदों की और भजन की मौत न हो। 22

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उभर रहे हैं आजकल सूखा के संकेत

कली-कली के भीतर आयी नव चटकन की मौत न हो। 23

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अब है खल के सामने दोनों मुट्ठी तान

बार-बार ललकार रहा जो उस ‘झम्मन’ की मौत न हो। 24

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लिये कुल्हाड़ी साथ वे सत्ता जिनके हाथ

राजनीति के दावपेंच में चन्दन-वन की मौत न हो। 25

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सुलझेंगी सब गुत्थियाँ इसके बूते यार

इसको जीवित रहना प्यारे इस उलझन की मौत न हो। 26

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फूटेगी कुछ रौशनी अंधकार के बीच

शर्त यही नव तेवर वाले नव चिन्तन की मौत न हो। 27

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आलिंगन के जोश को कह मत तू आक्रोश

ग़ज़लें लिख पर ‘कथ्य’, ‘काफिया’ और ‘वज़न’ की मौत न हो।28

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नया जाँच आयोग भी जाँच करेगा खाक !

ये भी बस देगा गारण्टी ‘कालेधन की मौत न हो’। 29

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जो भेजा है कोर्ट ने खल को पहली बार

जन-दवाब में रपट लिखी थी, इस सम्मन की मौत न हो। 30

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जनता के हित भर रही जिनके मन में आग

जब संसद के सम्मुख बैठें तो अनशन की मौत न हो। 31

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उठी लीबिया, सीरिया अब भारत के बीच

पकड़े यूँ ही जोर आग ये, आन्दोलन की मौत न हो। 32

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शब्द-शब्द से और कर व्यंग्यों की बौछार

यही कामना तेवरियों में अभिव्यंजन की मौत न हो। 33

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भावों की रस्सी बना उससे खल को बाँध

तेरे भीतर के वैचारिक अब वलयन की मौत न हो। 34

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पंछी पिंजरा तोड़कर फिर भर रहा उड़ान

पुनः सलाखों बीच न आये और गगन की मौत न हो। 35

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गोकुल में भी बढ़ रहे चोर-मिलावटखोर

वृन्दावन के मिसरी-माखन, मधुगुंजन की मौत न हो। 36

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हाथ उठा सबने किया अत्याचार-विरोध

लड़ने के संकल्प न टूटें, अनुमोदन की मौत न हो। 37

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जनता में आक्रोश लखि सत्ता कुछ भयभीत

पहली बार दिखायी देते परिवर्तन की मौत न हो। 38

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परिवारीजन एक हो पूजें यह त्योहार

घर में दो-दो गोधन रखकर गोबरधन की मौत न हो। 39

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संसद तक भेजो उसे जो जाने जन-पीर

नेता के लालच के चलते और वतन की मौत न हो। 40

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केवल इतना जान ले-‘प्यार नहीं व्यापार’

जुड़ा हुआ सम्बन्ध न टूटे, अपनेपन की मौत न हो। 41

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लिखा हुआ है ‘हिम’ जहाँ अब लिख दे तू ‘आग’

इसको लेकर चौकस रहना संशोधन की मौत न हो। 42

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जिस में जन कल्याण का सुमन सरीखा भाव

चाहे जो हो जाए लेकिन उसी कथन की मौत न हो। 43

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पूँजीपति के हित यहाँ साध रही सरकार

करें आत्महत्या किसान नहिं औ’ निरधन की मौत न हो। 44

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राजा चाहे तो प्रजा पा सकती है न्याय

बादल बरसें नहीं असम्भव बढ़ी तपन की मौत न हो। 45

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सोच-समझ कर क्रोध में कर लेना तलवार

सुखमोचन के बदले प्यारे दुःखमोचन की मौत न हो। 46

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बातें लिख शृंगार की लेकिन रह शालीन

केवल धन के ही चक्कर में सद्लेखन की मौत न हो। 47

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खूब हँसा हर मंच से नव चुटकुले सुनाय

पर दे गारण्टी आफत के आगे जन की मौत न हो। 48

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तूने मेरी शर्ट पर जो टाँका भर प्यार

तेरे ही हाथों कल सजनी उसी बटन की मौत न हो। 49

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अब भारी खिलवाड़ है शब्द-शब्द के साथ

हिन्दी वालों के हाथों ही हिन्दीपान की मौत न हो। 50

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कुछ तो हो सुख की नदी तरल तरंगित शाद

जो लेकर बूदें आया हो ऐसे ‘घन’ की मौत न हो। 51

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असुर न केवल साथ हैं इसके सँग अब देख

अति बलशाली रावण सम्मुख राम-लखन की मौत न हो। 52

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महँगाई डायन डसे, कहीं मारती भूख

कुछ तो सोचें सत्ताधरी यूँ जन-जन की मौत न हो। 53

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हरियाली के दृश्य हों पल्लव और प्रसून

जिसके आते कोयल कूके उस सावन की मौत न हो। 54

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देखो दिव्य उदारता, इसका छीना प्यार

पत्नी फिर भी सोच रही है ‘प्रभु सौतन की मौत न हो।’ 55

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याद रखो तुम ‘लक्ष्मी’, ‘तात्या’ का बलिदान

नयी सभ्यता के अब आगे ‘सत्तावन’ की मौत न हो। 56

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मंजर बदले चीख में, फैले हाहाकार

किसी रात के डेढ़ बजे होते अनशन की मौत न हो। 57

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नवपूरव की सभ्यता, पश्चिम के रँग देख

टाई पेंट सूट के आगे यूँ अचकन का मौत न हो। 58

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निर्धन का धन सड़ गया गोदामों के बीच

यूँ सरकारी गोदामों में फिर राशन की मौत न हो। 59

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प्रसव-समय पर नर्स ने किया नहीं उपचार

कोख-बीच यूँ ही भइया रे फिर किलकन की मौत न हो। 60

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खल के सम्मुख हो खड़ा अरे इसे धिक्कार

हाथ जोड़कर पाँव मोड़कर यूँ घुटअन की मौत न हो। 61

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पा लेंगे निश्चिन्त हो, भले लक्ष्य हैं दूर

सद्भावों के नेह-प्यार के बस इंजन की मौत न हो। 62

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सच को सच ही बोलना बनकर न्यायाधीश

हीरा को हीरा ही कहना, मूल्यांकन की मौत न हो। 63

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कल को प्यारे देखना मिटें सकल संताप

जहाँ तक्षकों की आहुतियाँ वहाँ हवन की मौत न हो। 64

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इन्हें न आये रौंदने कोई बर्बर जाति

जहाँ कर रहे फूल सभाएँ, सम्मेलन की मौत न हो। 65

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हाँ में हाँ मिलना रुके, झुके न सर इस बार

बन्धु किसी पापी के आगे ‘न’ ‘न’ ‘न’ की मौत न हो। 66

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छन्द और उपमान को सच का बना प्रतीक

मूल्यहीन रति के चक्कर में काव्यायन की मौत न हो। 67

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बना गये हैं पुल कई मिल घोटालेबाज

उद्घाटन के समय यही डर ‘उद्घाटन की मौत न हो’। 68

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अब केवल ‘ओनर किलिंग’ दिखती चारों ओर

प्रेमी और प्रेमिका के पावन बन्धन की मौत न हो। 69

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चीरहरण जिसने किया लूटी द्रौपदि लाज

ऐसा क्यों तू सोच रहा है दुर्योधन की मौत न हो। 70

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सिस्टम लखि बेचैन है तू भी मेरी भाँति

तेरे भीतर घुमड़ रहा जो उस मंथन की मौत न हो। 71

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रावण मिलने हैं कई जिनका होना अंत

रोक न टोक न रघुनंदन को राम-गमन की मौत न हो। 72

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दुश्मन से लड़ हो फतह यही बहिन की सोच

लगे न कहीं पीठ पर गोली यूँ वीरन की मौत न हो। 73

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अश्व सरीखा हिनाहिना मत देना तू बन्धु  

खल के सम्मुख सिंह सरीखे सुन गर्जन की मौत न हो। 74

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भय से बाहर तू निकल कान्हा बनकर देख

यह कैसे मुमकिन है प्यारे फैले फन की मौत न हो। 75

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मंत्रीजी का फोन सुन श्रीमानों में द्वन्द्व

चयनकमेटी के द्वारा अब सही चयन की मौत न हो। 76

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युद्ध और जारी रहे इस सिस्टम के साथ

असंतोष-आक्रोश भरे इस शब्द-वमन की मौत न हो। 77

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तू जग का कल्याण कर, तू है शिव का रूप

तूने खोला उसी ‘तीसरे’ आज ‘नयन’ की मौत न हो। 78

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जो है सच की राह पर उसका देंगे साथ

चूक न हो जाये अब साथी दुःख-भंजन की मौत न हो। 79

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जिससे यौगिक टूटकर बन जाना है तत्त्व

लेकर जो आवेश चला है उस आयन की मौत न हो। 80

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पृष्ठ-पृष्ठ घोषित हुआ जिस में धर्म अफीम

उस किताब को पूरी पढ़ना, सत् अध्ययन की मौत न हो। 81

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जिसमें दबकर मर गये कई जगह मजदूर

ऐसे बनते फिर बहुमंजिल किसी भवन की मौत न हो। 82

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दास-प्रथा की तोड़ने जो आया जज़ीर

फिर भारी षड्यंत्र हो रहे, फिर लिंकन की मौत न हो। 83

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फिक्सिंग का ये दौर है, बस पैसे का खेल

सट्टेबाजी के चक्कर में ‘मैराथन’ की मौत न हो। 84

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मति के मारो रहबरो, अरे दलालो और

महँगाई डायन के मुँह में पिस जन-जन की मौत न हो। 85

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नेता के सुत ने किया अबला के सँग ‘रेप’

रपट लिखाने के चक्कर में अब ‘फूलन’ की मौत न हो। 86

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जैसे हो जि़न्दा रखो मर्यादा का ओज

आचरणों की कामवृत्तिमय नव फिसलन की मौत न हो। 87

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जो रिश्तों के बीच में रहे खाइयाँ खोद

और उन्हीं को भारी चिन्ता ‘अपनेपन की मौत न हो’। 88

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यही समय का खेल है सदा न रहती रात

कालचक्र के बीच असंभव कटु गर्जन की मौत न हो। 89

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संशय से बाहर निकल दिखे नूर ही नूर

चाहे क्यों केवल यह प्यारे तंगज़हन की मौत न हो। 90

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प्रतिभाओं के सामने नकल न जाए जीत

कुंठा पाले ज्ञान नहीं यारो ‘एवन’ की मौत न हो। 91

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तू मनमोहन है अगर मंत्री-पद के साथ

कूड़े से खाना बटोरते सुन बचपन की मौत न हो। 92

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भरी क्लास में कर रहा दादागीरी झूठ

इस कक्षा का 'सच' है टीचर, अध्यापन की मौत न हो।

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चोट आस्था पर पड़े, सहता धर्म कलंक

पावन-स्थल ईश्वर के घर सुन्दर ‘नन’ की मौत न हो। 93

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झांसी की रानी लिए जब निकली तलवार

कुछ पिट्ठू तब सोच रहे थे ‘प्रभु लंदन की मौत न हो’। 94

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सिर्फ़ ‘खबर’ होते नहीं जनता के दुख-दर्द

पत्रकारिता कर ऐसी तू ‘सत्य’-‘मिशन’ की मौत न हो। 95

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‘झिंगुरी’, ‘दातादीन’ को जो अब रहा पछाड़

‘होरी’ के गुस्सैले बेटे ‘गोबरधन’ की मौत न हो। 96

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सारे दल ही दिख रहे आज कोयला-चोर

मनमोहन की फाइल में जा यूँ ईंधन की मौत न हो। 97

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जिसके भीतर प्यार के कुछ पावन संकेत

बड़े दिनों के बाद दिखी ऐसी चितवन की मौत न हो। 98

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लिया उसे पत्नी बना जिसका पिता दबंग

सारी बस्ती आशंकित है अब हरिजन की मौत न हो। 99

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इस कारण ही तेवरी लिखने बैठे आज

किसी आँख से बहें न आँसू, किसी सपन की मौत न हो। 100

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यही चाहता देश में एक तेवरीकार

चलती रहे क्रिया ये हरदम अरिमर्दन की मौत न हो। 101

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|| रमेशराज की लम्बी तेवरी [ तेवर-शतक ]  ||


 --15\109, ईसानगर , निकट-थाना सासनी गेट , अलीगढ़-२०२००१,

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